शोहरत सुनी आप कि तो हम चले आए
वरना ईस बाग मे कली कि क्या कमी
हम भी है फनकार हर हुश्न के काबिल
हम नही जहाँ वहा महफिल नही जमी
सुरत पर न जाइए हम प्यार के खरिदार है
बस जाम भरी रही रहे होगा कुछ कमी नही
छोडती नही महफिल हमे हम अजिब चिज है
झुठा ही सही प्यार मिले बस मिलेंगे हम वही
मिली नही सुकुन हमे महफिल के बाहर कभी
मर मिटे हम यही झुठी मोहब्बत या हो सही
हरि पौडेल