दिल्ली की पहचान पुरानी गौरवमय है कथा –सुहानी.
एक से बढ़कर कई किस्से है ,हर युग में है इसकी कहानी .
अब दिल्ली बन गया है दाग,दहसत की लग चुकी है आग.
बच्चे बूढ़े लोग तमाम , झुलस रहे है इसमें आज .
दिल्ली का वो दुराचार, देश में मचाया हाहाकार.
जीवन को भी रोंदा उसने ,दामन को किया था तार –तार .
वो मौत हुई अपघात हुई ,उस पशु –वृति से आघात हुई.
मन -बीमार मस्तिष्क विकार से ,जन – जीवन अवसाद हुई .
जो सृष्टि थी इतनी सुहानी, क्यों दृष्टि बन गयी घिनोंनी.
दैहिक भूख क्या इतनी प्रबल है,जो कर देती बातें अनहोनी .
ऐसी सोच ऐसी मानसिकता, शिक्षित-जन की यही है क्षमता.
दुष्प्रवृति वो क्यों अपनाते , विवेकहीन जगती क्यों इच्छा .
स्थूल शरीर तो जाता जहाँ से, आत्मा ही रोती यहाँ पे.
और भी ना हो ऐसी दशाएं ,चीख –चीख कर कहती सबसे.
ओ नराधम अब तो जागो, इस रक्त –पंक दलदल से भागो.
नर पिशाच बन क्यों जीते हो , बन फ़रिश्ता स्नेह जगा दो .
पापी बनकर जाने वाले , थोड़ा पुण्य तो कर के जाओ.
मरना तो तुमको भी है, कुपथ –पथ पर अब ना आओ .
भारती दास
ओ नराधम अब तो जागो, इस रक्त –पंक दलदल से भागो.
नर पिशाच बन क्यों जीते हो , बन फ़रिश्ता स्नेह जगा दो .
पापी बनकर जाने वाले , थोड़ा पुण्य तो कर के जाओ.
मरना तो तुमको भी है, कुपथ –पथ पर अब ना आओ .
ये पंक्तिया बहुत ही अच्छा और उद्देश्यपूर्ण है……….
सुनील कुमार दास,पटना
रचना अच्छी है
रक्त मे उबाल पैदा करता है
दिल्ली….
लड़ाई-झगड़े की जड़
इसी की वजह से महाभारत हुआ
तब इसका नाम इन्द्रप्रस्थ हुआ करता था
तदुपरान्त
मुगलों की राजधानी बनी
तब भी सत्ता-संघर्ष में खून की होलियाँ खेली गई
इसी दिल्ली ने मीर जाफर जैसे गद्दार भी दिये
सादर