आतंक कहे या आसुरी, अनगिनत थी आतंकी बिखरी.
मिथिला के मारीच-सुबाहु, ताड़काग्रस्त थे ऋषि व राऊ.
खर-दूषण-त्रिशरा असुर थे, सूपर्णखा से भयभीत प्रचुर थे,
आतंकी युग का नायक रावन,दहसत से थर्राया जन-गन .
जनता तो घायल पड़ी थी, विचारशीलता की कमी बड़ी थी.
राम को आना मजबूरी थी, जन मानस तो सुप्त पड़ी थी.
सही नीति साहस का साथ, राम ने की थी राह आवाद.
ऋषि-सत्य संस्कृति बचे, देश सहित भूपति बचे.
आसुरी युद्ध को गति देने, रामचंद्र वनवासी बने.
सत्ता-राज्य को त्याग दिये, सुख-साधन को छोड़ दिये.
राम का उद्येश्य बड़े महान,शपथ-प्रण का किये आह्वान.
वन-वन भटके जन-जन तारे, ऋषि-मुनि की दशा सुधारे.
व्यापक-जन अभिमान बनाये, जननायक श्री राम कहाये.
भावनाओं की शक्ति जगाये, प्रखर-तेजस्वी सेना सजाये.
पत्नी-पीड़ा सहज क्षोभ थी, समाधान की अमिट सोच थी.
आहुति देने को तत्पर, दोनों तरफ ही युद्ध था बर्बर.
आतंकवाद को मरना पड़ा, श्री राम से डरना ही पड़ा.
उनका ये जीवन संघर्ष, साहस-संकल्प से उपजा हर्ष .
रामराज्य का अर्थ यही है, सुख-सौभाग्य सबके लिए है.
आज भी ये आतंक बड़ा है, कोई नायक कहाँ -खड़ा है.
राम की त्याग नीति-आदर्श, चैतन्य में भरती पूंज-प्रकाश.
भारती दास
सुप्त जनमानस को जगाने का काम कर रहीं हैं,अच्छा है