जख्म दिल का तो हरा होने दे !
आज फिर उसको खफा होने दे !
बेच देना फिर किसी दुश्मन को !
मेरी कीमत तो जरा होने दे !!
बात मेरी भी चलेगी इक दिन !
खोटा सिक्का हूँ खरा होने दे !!
जान लेगा तू कद्र पैसे की !
तेरे बच्चों को बडा होने दे !
मैं फलक पर भी मिलूंगा इक दिन !
तू जमीं पर तो खडा होने दे !!
मयकशी तो छोड दूँगा मैं भी !
उसकी नजरों से जुदा होने दे !!
तू बचा ले ठोकरों से मौला !
“शाद” को फिर से खडा होने दे !! …. प्रदीप अवस्थी “शाद”
सुन्दर रचना
धन्यबाद kedia ji