गीत लिखूँ या प्रीत लिखूँ
हारा हूँ कैसे मैं जीत लिखूँ
प्रेम को अपना जीवन आधार लिखूँ
या द्वेष भरा यह संसार लिखूँ
जो श्रम से भी न मिल पाया वह गंतव्य लिखूँ
या समाज के विकृत मंतव्य लिखूँ
निर्धन तो दिखते ही नहीं क्या मैं अब धनवान लिखूँ
या उस लुप्त निर्धनता का क्या कोई गान लिखूँ
दुखियन के लक्ष दुःखों मे से कोई एक हजार लिखूँ
या किसी की किसी पीडा को बार-बार लिखूँ