बापूजी, आपका नेकीवाला दरिया अब दिखता नहीं
बेईमानी के बाज़ार में शायद आपका सच बिकता नहीं
भर भर के खुशियां जेबों में तो रखी है
पर वक़्त निकालकर शायद ही कभी चखी है
किश्तों की जंजीरों ने सपनों को जकडा है
ज़मीर से बड़ा ज़रुरतों का आंकडा है
उसूलों की, बापूजी, अब रोटी नहीं आती
भारत से इंडिया अब मेल नहीं खाती