Homeएम० के० मधुदो बूँदें ओस की दो बूँदें ओस की के. एम. सखी एम० के० मधु 17/02/2012 No Comments पहाड़ से गिरती पत्थरों से चोट खाती वह नदी सूख चुकी है पलक की कोर से दो बूँदें ओस की उठा सको तो उठा लो आँसुओं के सैलाब को पानी की ज़रूरत है समय का सूर्य और गर्म होने वाला है Tweet Pin It Related Posts किसी एक के नाम मकान है घर नहीं घरौंदा About The Author के. एम. सखी Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.