उससे कहूँगा आज-
कल तक मेरे मुँडेर पर
अक्सर जो आती रही है
मीठे गीत गाती
चूँ-चूँ करती
एक चिड़िया!
न जाने क्योँ?
उसकी ये चहचहाट
जानी-पहचानी सी
लगती हे
कुछ पहले की सुनी हुयी
मगर
एकदम ताज़ी।
मेरी चिड़िया!
ज़रा बच के निकलना
अभी माहौल भारी है।
हज़ारोँ
गिद्ध सी नज़रेँ
तुमपे टिकते देखा हूँ।
और कल
व्योम में
कोई शिकारी
अपना ज़ाल
फैला रहा था।
तब तक
मेरे घर मेँ
जहाँ चाहे रह लो
रोशनदान,मचान या
जहाँ चाहे
मेरी किताबोँ की
आलमारी मेँ भी
तुम कहीँ भी
बीट करना
कुछ न बोलूँगा
तुम्हेँ पिँजरेँ मेँ
रखनेँ की नीयत
कभी न रखूँगा।
तुम्हेँ जब भी जी चाहे
घोँसले सहित
उड़ जाना
मना न करूँगा।
मगर
तब तक रुको
जब तक कि-
माहौल का भारीपन
कुछ कम नहीँ होता।
शुभम् श्रीवास्तव ‘ओम’
good very good try more to do better more
thanks vanshika ji….
Nature with hormony….Very intresting bt serious topic..