नवरात्री के नौ दिन होते
जिसमे लोग मग्न हो जाते
काली -दुर्गा -तारा -रूप
श्रधा भक्ति के प्यारा रूप
चर-अचर प्राणी का चिंतन
अभिव्यक्ति अनुभव का मंथन
जीवन चक्र का है ये सत्य
चिर-पुरातन नूतन नित्य
मातृत्व भाव का सम्यक बोध
सही स्वरुप संस्कृति की सोच
अलग-अलग है सबकी मनौती
विषम वेदना से भरी चुनौती
माँ के द्वार पर होता मिलन
मंगल कोमल संवेदन मन
ऐसे निःमग्न सब है होते
जैसे एक ही वृक्ष के हों ये पत्ते
फूल हो फल हो या प्रेम निहित हो
माँ से जुड़ कर पहचान सतत हो
ना हो दिखावा ना कोई भूल
एहसास कराती पूजा का मूल .
भारती दास
माँ की आशीर्वाद आप पर बनी रहे