नींद तो आती कहांसे
भूखे पेट में
सपने तो तब आये रोटी के
जब खाने मिले रोटी
भूखे पेट आंसू भी नहीं आते
वह भी पिए जाते है
कौन समझे ईस पीड़ा को
जो कभी भूखा रहा हो
कबि क्या समझे इस पीड़ा को जो कबिता लिखकर बयान करे
यह तो कोई कल्पना नहीं
जो कबिता के माध्यम
कोरे कागज़ पर उतार देवे ..
यह तो जिन्दगी का एक पहलु हैं ..
जिसमे बीते वह ही तस्वीर में
उतार सकता हैं
चिपका हुआ पेट सुनी सुनी आँखे जो
रोटी को तरस रही हो ।
–प्रेमचंद मुरारका
bahut khub