शीश हिमगिरि बना, पांव धोए सिंधु घना,
माँ ने सदा वीर जना, देश को प्रणाम है |
ब्रम्हचर्य जहाँ कसे, आर्यावर्त कहें इसे,
चार धाम जहाँ बसे, देश को प्रणाम है |
वाणी में है रस भरा, शस्य श्यामला जो धरा,
ऋतु रंग हरा-भरा, देश को प्रणाम है |
गंगा-यमुना हैं जहाँ, नर्मदा का नेह वहाँ,
पूजें कोटि देव यहाँ, देश को प्रणाम है ||