(१)
नारी से नैना मिले, उपजें कोमल भाव.
फँसे मोह के चक्र में, नर का यही स्वभाव.
नर का यही स्वभाव, जानती है यह नारी.
तभी रूपसी आज, सुशोभित लिए पिटारी.
खुला-अधखुला देख, मगन होते मणिधारी.
बजा-बजा कर बीन, बाँध ले नर को नारी..
(२)
नारी अब अबला कहाँ? नित्य नचाये मोर.
सँग-सँग नाचे मोरनी, नारी का ही जोर.
नारी का ही जोर, भरे नर घर में पानी.
टेढ़ी अगर निगाह, याद आ जाये नानी.
बैठा नैन झुकाय, शीश पर आफत भारी.
चरण चांपता नित्य, तभी खुश सबला नारी..
(३)
पनघट घूंघट गागरी, जल से मालामाल.
छलकाती गोरी चली, सधी हुई है चाल..
सधी हुई है चाल, शीश धर दो-दो गगरी.
पावन गंगा रूप, दृष्टि अनजाने ठहरी.
छेड़ सुरीली तान, खोल मन-मंदिर के पट.
खोज रहा मन किन्तु, कहाँ अब घूंघट पनघट??
(४)
अधनंगी नारी वहीं, जहाँ अधखुले अंग.
नजरों में भी दोष है, कुछ कपड़े हैं तंग.
कुछ कपड़े हैं तंग. धरें मिल संयम सारे.
मुख पर ही हो दृष्टि, फिसलना नहीं वहाँ रे.
फिर लें नैन झुकाय, मिलें मोती बहुरंगी.
यदि नैनों में शील, कहाँ नारी अधनंगी..
(५)
भगिनी-मातु समान है, नारी है अनमोल.
फिर भी दुनिया मापती, नारी का भूगोल.
नारी का भूगोल, मापती आँखें फोड़ें.
जो भी करे कुकर्म, सभी की गर्दन तोड़ें.
ढीला है कानून, तभी तो दुनिया ठगिनी.
अंगभंग ही न्याय, कहे आक्रोशित भगिनी..
(६)
नियम लचीले हैं सही, खरी-खरी यह बात.
दुष्कर्मी को है मिली, नियमीं में सौगात.
नियमीं में सौगात. लचीलापन है इतना.
नहीं सिद्ध हो दोष, जुर्म कर लें भी कितना.
मौके पर हो न्याय, जिस्म पर धागे नीले.
करें अंग को भंग, कड़े हों नियम लचीले..
(७)
कहना भाभी ही भला, चाहें यदि उद्धार.
कभी बहनजी मत कहें, सुनिये मेरे यार.
सुनिये मेरे यार, भला नहिं ऐसा कहना.
बोझिल होंगे आप, पड़ेगा दुःख ही सहना.
‘अम्बर’ क्यों बेचैन, जरा ही दबकर रहना.
स्वर में मिश्री घोल, सदा भाभीजी कहना..
(८)
घरवाली को पूजिए, करिये तब फरियाद.
धर्म-कर्म सब कीजिये, लेकर आशीर्वाद.
लेकर आशीर्वाद. काम सब पूरा मानें.
यदि सारे दिन चैन, कृपा उसकी ही. जानें
है ‘अम्बर’ की बात, सभी से भले निराली.
नित्य करें मनुहार, लगे सुंदर घरवाली..
(९)
वैलेन्टाइन साथ में, मचा हुआ है शोर.
बाँहों में बाहें दिखें, मौज मने चहुँओर.
मौज मने चहुँओर, विदेशी रंग जमा है.
एक दिवस हो प्रेम, लीजिए जली शमा है.
संस्कार लें धार, बदल कर अपनी लाइन.
नित्य निभाएं प्रीति, घरों में वैलेन्टाइन..
(१०)
माया ठगिनी है बहुत, मोह दिखे हर ओर.
जकड़े मायामोह जब, कहीं मिले नहिं ठौर,
कहीं मिले नहिं ठौर, मरे आँखों का पानी.
अंतस छाये स्वार्थ, करे मानव नादानी.
सत्य मिटा दे मित्र, पाप की काली छाया.
जागृत करें विवेक, तभी छोड़ेगी माया..