____________________________
महके माटी गाँव में, चंदनस्वेदी देह.
मदमाये महुआ मदिर, आपस में हो स्नेह..
कच्ची महके गाँव में, बास मारती देह.
पी के लुढके शाम को, कहाँ रहा है स्नेह..
_________________________
प्रातः मुर्गा बांग दे, उगे सुनहरी भोर.
धर्म-कर्म में जो रमे, चले खेत की ओर..
मनरेगा में मौज है, मजदूरी का स्वांग.
प्रातः दारू साथ में , हो मुर्गे की टांग..
_________________________
गीत सुरीला गूंजता, होती राम-जुहार.
सेवा भी निःस्वार्थ थी, आपस में था प्यार.
संस्कार अब हैं कहाँ, हेलो-हाय भी रांग.
झुरमुट में होता जुआ, जमकर छनती भांग..
_________________________
पूजे जाते थे कुएँ, मचता जहाँ धमाल.
प्यासे को भी तृप्ति हो, पनघट माला-माल ..
पनघट सूने रो रहे, कुएँ मिटे बेदाम.
सरकारी नल जो लगे, चलता इनसे काम..
_____________________________
अपराधी इक-आध थे, पंचायत का मान.
ऐसी थी अवधारणा, पंचों में भगवान..
किडनैपिंग औ रेप से, नहीं सुरक्षित जान.
अपराधी बेखौफ क्यों, अपने जो परधान..
_____________________________
गोवंशी भरपूर थे, दही-दूध सत्कार.
गोमाता को पूजते, बछड़ों से था प्यार..
गोचर सारे गुम हुए, नहीं रहे खलिहान.
गोवंशी हैं कट रहे, कहाँ गए इंसान..
_____________________________
नहीं भूलता स्वाद है, गुड़ को देते तूल.
पीकर शरबत राब का, शक्कर जाते भूल..
घर में चारा जो नहीं, बिकी गाय बेमोल.
नहीं एक अब जानवर, कोल्ड ड्रिंक ही खोल..
__________________________
घूंघट में गोरी चले, सोलह किये सिंगार.
आभूषण हैं लाज के, प्रियतम से अभिसार..
गाँव-गाँव में चल रहे, बेशर्मी के काम.
शीला बनी जवान है, मुन्नी तक बदनाम..
_____________________________
शिक्षा का पर्याय थे, गाँवों के स्कूल.
गुरुजन थे भगवान सम, पद्धति थी अनुकूल..
जनगणना में हैं फँसे, पल्स-पोलियो आम.
एक पढाई छोड़कर, सौ-सौ सौंपे काम..
टीचर अब आते नहीं, पन्द्रह दिन स्कूल.
शिक्षामित्र चला रहे, चुभे हृदय में शूल..
____________________________
मुँह बोले रिश्ते चलें, ऐसा था सम्मान.
इनकी रक्षा के लिए, दे देते थे जान..
हैं जो रिश्ते खून के, उनमें क्या सम्मान.
निजी स्वार्थवश आज तो, ले लेते हैं जान..
_____________________________
जड़ी बूटियाँ पीसते, अंतर्मन में ज्ञान.
धनवंतरि थे गाँव में, होते थे लुकमान..
नहीं कमाई सो यहाँ, कैसे टिकते पांव.
पढ़े लिखे जो डॉक्टर, उन्हें न भाये गाँव.
करें दलाली नित्य ही, नहीं कमीशन पाप.
गाँव-गाँव में डाक्टर, वह भी झोला छाप..
____________________________
कच्ची कैरी झूमतीं, भाये मंद बयार..
मन बौराये बौर से, दिल में उपजे प्यार.
अमराई महके कहाँ, नहीं रहा वह प्यार.
बागें सारी खो गईं, कटे पेंड़ सब यार..
____________________________
देशी आमों से पटी, बागों की हर मेंड़.
भुइयां देवी पीर पर, जामुन का था पेंड़..
उपजाता है अन्न जो, सो भूखा ही सोय,
लाइन में डंडे मिलें, खाद-बीज को रोय..
_________________________