वक्त अपने हाथ का जब आइना दिखलायेगा
कोई चेहरा गुनगुनायेगा कोई शरमायेगा ॥
इस गलत फहमी में रहना है सरासर खुदकुशी
कि आदमी के वास्ते यह वक्त ही थम जायेगा ॥
कौन जाने कल यहां तस्वीर कैसा रुख करे
जुर्म का गहरा धुन्धलका आप ही छट जायेगा ॥
जब हकीकत सामने आयेगी पर्दा छोडकर
रक्त सारी धमनियों का बर्फ सा जम जायेगा ॥
ये तो कुदरत की इनायत का खरा है कायदा
हर सुबह आयेगा सुरज शाम को ढल जायेगा॥
जिन्दगी का कद उठा करता है एक उंचाई तक
बाद उसके तो सभी कुछ खाक मे मिल जायेगा॥
रुप चमकायेगा जब श्रिंगार बस बिजलियां
आदमी क्या ” दास” पत्थर भी गजल कह जायेगा ॥
शिवचरन दास
जिन्दगी का कद उठा करता है एक उंचाई तक
बाद उसके तो सभी कुछ खाक मे मिल जायेगा
अद्भुत लेखन
हर शब्द का सुन्दरता से चयन श्रीमान आपको इसके लिए बहुत बहुत बधाई .
gazab!
baat vahi jo patah nahi kab se kahi jati rahi h
par andaz-e-bayan MASHA ALLAH !