हर कोशिश को अन्जाम की ही क्यू हद हो?
हर दांव पर बस जीत की ही क्यूं ज़िद हो?
जो ख़त्म न हो ऐसी ही दौड क्यूं?
टहलकर भी देखो, हर दम यह होड क्यूं?
ज़िंदग़ी अगर छोटी है, तो यह रफ़्तार क्यूं?
इतमिनान के हर पल को यह इन्कार क्यूं?
हर रास्ते पर मंज़िल ही क्यूं ज़रूरी है?
सफ़र का भी मज़ा लो, ऐसी भी क्या मज़बुरी है?