Homeएम० के० मधुबटखरे बटखरे के. एम. सखी एम० के० मधु 17/02/2012 No Comments एक धरती, एक आकाश हम साथ-साथ एक दूसरे को तराजू के पलड़े पर तौलते हुए बिस्तर पर करवट बदलती ज़िन्दगियां बटखरों की तरह बंटे खानों में सजा कर रख दी गई हों नेपथ्य में कभी न दिखाई जाने वाली नुमाइश की तरह। Tweet Pin It Related Posts अंतर्द्वंद्व बटुआ एक अनाम दुनिया की प्रणय-कथा About The Author के. एम. सखी Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.