!!ग़ज़ल !!
प्यार हुआ है जबसे बातों बातों में !!
उनकी ही खुश्बू है मेरी सांसों में !!
पनघट में गुलशन में सब्ज़ा ज़ारों में !!
वो दिखता है मुझको चाँद -सितारों में !!
छोड़ के बाबुल का घर इक दिन जाना है !!
लगा के मेंहदी गोर -गोर हाँथो में !!
हर शै में उनका चेहरा दिखलाई दे !!
उनके ही सपने हैं मेरी आँखों में !!
बारिश की बूंदें रुख्सार को चूमें है !!
दोशीजा जब बल खाए बरसातों में !!
उनको पाकर मैंने सब कुछ पाया है !!
खुशिओं की सौग़ात है मेरे हांथो में !!
हर पल मुझको तेरी याद सताती है !!
नीद नहीं आती है अब तो रातों में !!
सलीम रज़ा रीवा [म .प्र .] 20.01.2013