Homeएम० के० मधुमकान है घर नहीं मकान है घर नहीं के. एम. सखी एम० के० मधु 17/02/2012 No Comments छत के शहतीर कील बन रहे आँगन की तुलसी काँटेदार नागफ़नी डायनिंग टेबुल पर चाय के प्याले काँच-काँच किरकिरे साँझा चूल्हा पर रोटियाँ नहीं पक रहा है मन धुएँ का वन है ये मकान परन्तु घर नहीं । Tweet Pin It Related Posts देहगीत 1 समझौता ज़िंदगी लिखते हुए About The Author के. एम. सखी Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.