बदस्तूर मुकम्मल है काफ़िला
बामुश्किल मंज़िलों का गुमान होता है
इक आती साँस यहाँ की
इक जाती साँस वहाँ की
जो दों साँसे मिल जाए
तो जाने कहाँ कहाँ की
उंगलियों पे गिन लो, उतने ही सफ़र है
ये सफ़र ……जो कभी ख़त्म होते ही नहीं
कई कई बाहर की परते
कितनी ही अन्दर की गलियाँ
उम्र गुज़रती रहती है
पर मोड़ कायम रहते है
फकत क्या अन्दर, क्या बाहर
ज़िन्दगी अजीब फ़लसफ़ा है
अनगिनत काफिलों का, अनगिनत मंज़िलो का
कितने ही सफ़र का …
सफ़र की जो मंज़िलो से ऊचे होते है ..
सफ़र की जो मंजिलो की भी मंज़िले होते है
बदस्तूर मुकम्मल है काफ़िला
बामुश्किल मंज़िलों का गुमान होता है
बस इक सफ़र है, जो कभी खतम ही नहीं होता है
~~~~अनिन्ध्या ~~~
बस इक सफ़र है जो कभी खतम ही नहीं होता है
वाह बहुत ही खुबसूरत रचना है
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