जिन्दगी विरान है,
सब, हम से अंजान है,
क्या करे, बस चल रही जान है.
ये दिल परेशान है,
उन्हे ना, कुछ ध्यान है,
क्या करे, वो इन सब से अंजान है.
ज़िन्दगी बेनाम है,
गम मे डूबा, ये नादान है,
क्या करे, मुस्किल में मेरे प्राण है.
दूश्मनी जिनका काम है,
“रौशन”, जिनके लिये गुमनाम है,
क्या करे, वो हम से ही परेशान है.
हँसी जिनकी पहचान है,
जिसका, ना कोई दाम है,
क्या करे, उनकी हँसी में मेरी जान है.
बस याद एक ही नाम है,
प्रशाद, जिनका उपनाम है,
क्या करे, शायद…प्यार इसी का नाम है.
थोरे से, वो नादान है,
कुछ लोग, जो महान है,
क्या करे; ये कविता, बस उनके ही नाम है.
-धन्यवाद
रौशन कुमार सुमन) )))