उदासियो में भी जीने के रास्ते निकाल लेते है
जब कुछ सुझाई नहीं देता सिक्का उछाल लेते है
ग़ुरबत इंसान को जीना भी सिखा ही देती है
जब कुछ नहीं होता पानी ही उबाल लेते है
हमने सब्र करना भी सीख लिया और जीना भी
अब बे अक्सरियते होने का हल भी निकाल लेते है
मैंने जिन परिंदों को उर्ड़ना सिखाया था कल
आज वो सारा कारोबार आसमान में सभाल लेते है
अब फिर हमें जुस्तुजू एक नए चारागर की है
चलो पुराने जिस्मो में नई रूह डाल लेते है
बेटे को बाप के दर्दो गम का अहसास तो है
न जाने किस कमी के तहत पल्ला झाड़ लेते है
आज वो दोस्त भी रुखसत हुआ तुमसे “ल ई क”
नाज़ जिस पे था के मिल के हर हल निकाल लेते है
लईक अहमद अंसारी
very nice poem sir
thank very much..
hosla afzai ka shukria