किस्म्त का कीमती फूलो से है मेल
सागर का, सागर की लहेरो से है मेल
इन्सान की गुजारिश क्या है, ये पुचो उनसे
ये तो सब है कुदरत का ही खेल
आस्मान के तारो की मासूमिअत कौन समज्हे
दिन के उजालो की खुशिया कौन समजे
दुख मे खुदा को याद किया, हमे ही ऐसा क्यू दिया
सुख के उस आनन्द मे खुदा को कौन समजे
चलते चलते रिश्ते बनते, दोर हमारी है
वो क्या समजे इस दोर को, जो सताती है
दोस्ती का नया रिश्ता बनाया आपने
खूब जमेगी ये दोस्ती, कह दिया हमने
कविता तो बहुत अच्छी लिखती हैं आप पर शयद हिंदी के शब्द ठीक से टाइप नहीं हो पा रहे हैं.