ग़ज़ल
दर्द दे कर न दवा दे मुझको
उम्र भर की न सज़ा दे मुझको
प्यार का यूं न सिला दे मुझको
दोस्त बनकर न दगा दे मुझको
क्यूं भला आज ख़फ़ा हो मुझसे
मेरी ग़लती तो बता दे मुझको
या खुदा ऐसी मुहब्बत दे दे
हर कोई दिल से दुआ दे मुझको
हो के मज़बूर ग़म-ए- दौरां से
ये भी डर है न भुला दे मुझको
चैन मिल जाए दमे आखिर हेै
मेरी ग़ज़लों कोे सुना दे मुझको
या खुदा इश्क-ए-नबी के सदके
उनका दीवाना बना दे मुझको
shayar salimraza rewa mp
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