कवि सम्मेलन में – मैं कविता सुना तो दूँ
मगर मुझे जो तालियाँ मिलेंगी, बाप रे !
तेरे मोहल्ले में – मैं घर बना तो लूँ
मगर मुझे गालियाँ मिलेंगी, बाप रे !
और शादी तो मुझे भी करनी है एक न एक दिन
मैं तुझसे ब्याह रचा तो लूँ
मगर मुझे जो सालियाँ मिलेंगी, बाप रे !
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गुरचरन मेह्ता