न वेद-पुराण कभी सुनता-सुनाता हूँ
न रामायण में ही कभी ध्यान लगाता हूँ
न गीता का पाठ कभी पढ़ता-पढ़ाता हूँ
न किसी भजन में ही रमता-रमाता हूँ
जब भी मन होता है ऐसे किसी काम का
बस “सारे जहाँ से अच्छा “ गीत गुनगुनाता हूँ
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गुरचरन मेह्ता
गुरुचरण जी,
यह बहुत सुन्दर कविता है |
ऐसी कवितायें आप और भी लिखे |
सुभकामनाओं सहित |