Homeरविश 'रवि'जीने का हुनर जीने का हुनर रविश ‘रवि’ रविश 'रवि' 22/01/2013 2 Comments यहाँ मसाईलों के अंधेरे हैं बहुत चलो वक्त की साख से कुछ पत्ते तोड़ लूँ… गम्-ए-दौरां ने तराशा है मुझे ऐ ग़ालिब, तुझसे जीने का हुनर सीख लूँ. रविश ‘रवि’ Tweet Pin It Related Posts रोशनी मेरा बिखरना…. हाथों की लकीरें …. About The Author ‘रवि’ 2 Comments CB Singh 24/01/2013 रविश जी, यह बहुत सुन्दर कविता है | ऐसी कवितायें आप और भी लिखे | सुभकामनाओं सहित | Reply raviish 'ravi' 29/01/2013 आभार….सिंह साहब. Reply Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.
रविश जी,
यह बहुत सुन्दर कविता है |
ऐसी कवितायें आप और भी लिखे |
सुभकामनाओं सहित |
आभार….सिंह साहब.