मोहब्बत का तराना कभी,
इस दिल-ए-नादाँ ने भी गाया था !
गुमसुम कही अजनबी खयालो में खोये थे,
जब ये दास्ताँ सुनाया था !
खिल उठी दिल की हर कलियाँ थी,
प्यार से जब ये आशियां सजाया था !
मोहब्बत का तराना कभी,
इस दिल-ए-नादाँ ने भी गाया था !
बेकल सी हताश जिंदगी को ,
बड़ी मुश्किल से संभाला था !
तिनके तिनके सा हर ख्वाब संजो,
शामियाना अपना बसाया था !
मोहब्बत का तराना कभी,
इस दिल-ए-नादाँ ने भी गाया था !
-श्रेया आनंद
(19th Jan 2013)
श्रेया जी,
यह बहुत सुन्दर कविता है |
ऐसी कवितायें आप और भी लिखे |
शुभकामनाओं सहित |
आपका बहुत बहुत शुक्रिया