सड़क किनारे लाचार बचपन
आँखों में लिए लाखों सवाल
घूरता रहा मेरे मुन्ने को
जो लिए था हाथ आइस क्रीम
और पहने था सुंदर वस्त्र
जो पकडे था माँ का हाथ
और बैठ गया था कार में
अब तक उन सवालिया आँखों
के जवाव न मिल पाए मुझे
जब भी गुजरती हूँ सड़क से
मिला नहीं पाती में नजरें
क्योंकि कुछ कर जो नहीं पाती
उन सवालिया आँखों के लिए
वो आँखे अब भी घूरती हैं
behad hi touching lines likhi hai. sadak ke bachon ki isthathi par. bohot hi achaai kavita hai