रूठते वो रहे, हम मनाते रहे।
और हर गम गले से लगाते रहे॥
वो शितम पर शितम हम पे ढाये मगर।
हर शितम सह के हम मुस्कराते रहे॥
बाँट पाए ना खुशियाँ हमारे कभी।
हम उनके गम को भी अपना बनाते रहे॥
जल रहा आज परवाना बन कर के “काजू”
वो शमा बन के हर पल जलाते रहे॥
“काजु निषाद”