कहते तो बहुत कुछ हैं,
फिर भी खामोश लब हैं!
मुस्कुराते तो बहुत हैं,
फिर भी आँखे ये नम हैं!
जीने की तमन्ना तो है,
गर जिंदगी अपनी नहीं है!
अजब सी ही दास्ताँ है,
इस दिल-इ-नादाँ की,
सासें तो बहुत बची हैं,
फ़क्त लम्हों की कमी है!!
-श्रेया आनंद
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क्या बात कही है श्रेया जी आपने | धन्यवाद
धन्यवाद