Homeख़ुमार बाराबंकवीतेरे दर से उठकर तेरे दर से उठकर के. एम. सखी ख़ुमार बाराबंकवी 17/02/2012 No Comments तेरे दर से उठकर जिधर जाऊं मैं चलूँ दो कदम और ठहर जाऊं मैं अगर तू ख़फा हो तो परवा नहीं तेरा गम ख़फा हो तो मर जाऊं मैं तब्बसुम ने इतना डसा है मुझे कली मुस्कुराए तो डर जाऊं मैं सम्भाले तो हूँ खुदको, तुझ बिन मगर जो छू ले कोई तो बिखर जाऊं मैं Tweet Pin It Related Posts कभी शेर-ओ-नगमा बनके अकेले हैं वो और झुंझला रहे हैं वो हमें जिस कदर आज़मा रहे है About The Author के. एम. सखी Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.