!! ग़ज़ल !!
कौन कहता है की नज़र तक है
वार उनका मेरे जिगर तक है
मस्त नज़रों का मय जिधर तक है
खूबसूरत फ़िज़ा उधर तक है
उसके आमद की धूम है सू
रौशनी शाम से सहर तक है
चाँद निकला है मेरे आँगन में
रोशनी मेरे बामो दर तक है
चाँद सूरज चले इशारों से
उनके क़ब्ज़े में तो सजर तक है
ग़म ख़ुशी ज़िंदगी में हैं शामिल
अब निभाना तो उम्र भर तक है
चंद पैसों में बेंच दी ग़ज़लें
उसकी चर्चा गली शहर तक है
सलीम रज़ा 9981728122
gazal shayar salimraza rewa