काश के हमे भी कोई फर्क न पड़ता
उनके ख्वाइशों के बिखर जाने पर
और यूँ ही हम मुस्कुराते रहे,
मगर ऐसी आदत मेरी नहीं है
काश के जख्म दे सकते हम भी उन्हें
मेरे उमीदों को जिसने है तोडा
कही से दबी वो आह निकले मेरी,
मगर ऐसी फितरत मेरी नहीं है
मेरे उमीदों को जिसने है तोडा
कही से दबी वो आह निकले मेरी,
मगर ऐसी फितरत मेरी नहीं है
काश के उन्हें खुद ही महसूस हो सके
मेरी खामोशियों की दास्तान जो थी
लौटा दे मुझको मेरी जिंदगी फिर,
मगर ऐसी अब हसरत मेरी नहीं है
काश के हकीक़त बन कर आइना
मेरे सुनहरे सपनो को ही दोहराता
जिंदगी की कश्मकश में फसी मगर
ऐसी किस्मत मेरी नहीं है – प्रीती श्रीवास्तव