फूलों भरी क्यारी हूँ मै
नर नहीं, नारी हूँ मै ….
आकाश के इन्द्रधनुष का,
है समाया मुझमे सात रंग
हर एक कली में है भरा,
प्यार का एक नया तरंग
जीने की सच्ची अधिकारी हूँ मै,
नर नहीं, नारी हूँ मै …..
माँ हूँ मै, जानती हूँ जीवन,
हर बचे के रूह का हूँ दर्पण
सीचती हूँ खून से अपने,
हर शिशु का मन और तन
करुना हूँ, ममताधारी हूँ मै,
नर नहीं, नारी हूँ मै ….
माना के छोटी सी हूँ गुडिया,
पर ख़ुशी की हूँ मै पुडिया
अंधेरे की मै हूँ वो ज्योति ,
जैसे शीप में बनती है मोती
प्यार का एहसास, तुम्हारी हूँ मै ,
नर नहीं, नारी हूँ मै ….
नटखट हूँ, तुमको हूँ सताती,
रोती तो तुमको भी रुलाती
छेड़ कर तुमको खुद हट जाती,
फिर अम्मा से डाट पडाती
भैया! पर तेरी राजदुलारी हूँ मै,
नर नहीं, नारी हूँ मै …..
छोड़ कर अपनों का आँगन,
त्याग कर अपना ये जीवन
सब करती हूँ तुझको समर्पण,
निभाती हूँ तेरा हर बंधन
खिलौना नहीं, अर्धांगिनी तुम्हारी हूँ मै,
नर नहीं, नारी हूँ मै …..
वक़्त दे कर सोचो ये एक दिन,
क्या जी सकोगे जीवन मेरे बिन?
विद्या हूँ मै, लक्ष्मी हूँ मै
माता हूँ मै, जन्म-भूमि हूँ मै ,
आकाश हूँ, पाताल हूँ मै,
महामाया, महाकाल हूँ मै,
दुर्गा हूँ, सिंह-सवारी हूँ मै
नर नहीं, नारी हूँ मै ….
– प्रीती श्रीवास्तव
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