कुर्बत से मेरी कतराने लगा है ,
जो पास था दूर जाने लगा है ,
सूरज से कहो अब न निकले ,
अँधेरा हमें रास आने लगा है ,
क्या करूँगा लम्बी जिंदगी लेके ,
दुआओं से दिल घबराने लगा है ,
हशर के मैदां का हश्र भूल कर ,
इंसा दुनिया को बसाने लगा है ,
कहाँ से लाऊं मैं तोड़ कर इन्हें ,
वो मांग में तारे सजाने लगा है ,
बदले हैं तेवर जब से बहार ने ,
ज़ख्म और भी गहराने लगा है ,
दास्तान -ऐ- गम सुन कर मेरा ,
सहरा भी आंसू बहाने लगा है ,
जिसे भी दिया है आसरा हमने ,
वो ही आशियाँ जलाने लगा है ,
मिलती कहाँ है हक़ीक़त की शक्लें ,
आईना भी चेहरा छुपाने लगा है ,
आँखें नम उसकी चेहरा उदास था ,
वो मंज़र मुझे याद आने लगा है ,
और करता भी क्या “शादाब” अब ,
तनहाइयों से दिल बहलाने लगा है !!
bahut khoob