पीहर का बिरवा
छतनार क्या हुआ,
सोच रही लौटी
ससुराल से बुआ।
-
- भाई-भाई फरीक
- पैरवी भतीजों की,
- मिलते हैं आस्तीन
- मोड़कर क़मीज़ों की
झगड़े में है महुआ
डाल का चुआ।
-
- किसी की भरी आँखें
- जीभ ज्यों कतरनी है,
- किसी के सधे तेवर
- हाथ में सुमिरनी है
कैसा-कैसा अपना
ख़ून है मुआ।
-
- खट्टी-मीठी यादें
- अधपके करौंदों की,
- हिस्से-बँटवारे में
- खो गए घरौंदों की
बिच्छू-सा आंगन
डालान ने छुआ।
-
- पुस्तैनी रामायण
- बंधी हुई बेठन में
- अम्मा जो जली हुई
- रस्सी है ऐंठन में
बाबू पसरे जैसे
हारकर जुआ।
-
- लीप रही है उखड़े
- तुलसी के चौरे को
- आया है द्वार का
- पहरुआ भी कौरे को,
साझे का है भूखा
सो गया सुआ।