सुंदर मन।
कपोतों पर भेजे
शांति की पाती।
बाँचे पाती को
धोये मन निर्मल
करे उससे।
लिखे न उसे
भोजपत्र पर या
कागज पर।
बाँचे व याद
रखे और मनन
करे मन में।
पूजा करे व
श्रद्धा रखे प्रकृति
पर मन में।
अक्षर पर
भाव बनते घर
घर फैलते।
अक्षर कभी
कागज के गुलाम
नहीं होते हैं।
सभी उचित
अनुचित विचार
शब्द से बनें।
उकेरी गयी
हमारे कानों पर
वह ऋचा है।
वेद की ऋचा
ज्ञान की तरंगों से
आलोड़ित है।
आत्मा होती है
झंकृत सामवेद
के तार पर।
परमात्मा से
मिलन का साधन
बनती ऋचा।
पवित्र शब्द!
ध्वनि है पवित्र
क्रांति रचती।
सदियों से तो
एक संतति सुने
सुनाये आगे।
इस तरह
ऋचा की भावना
रही अक्षुण्ण।