कवि बनने के लिए कविता लिखना पङता है
दुःख में भी दिखावटी खिलखिलाना पङता है
मैनें भी कवि बनने के लिए कई पापङ बेले
अपनी श्रीमतीजी के कई बेलन बङी शान से झेले
कई बेलन झेले फिर भी हुआ न असर
लगता है बेलन की मार में कहीं रह गई कसर
छोङो बेलन को बात श्रोताओं की करें
बेचारे श्रोता जियें या बिन पानी डूब मरें
भूल-भरोसे भी सुनले यदि कविता मेरी
उनके घर में छिङ जाती है रणभेरी
सब्जी मण्डी के श्रोताओं को भी मैंनें आजमाकर देखे
इन्होंनें तो टमाटर की बजाय कोरे बैंगन फैंके
ले गया बैंगन घर सब्जी बनाने के लिए
मिसेज कवि ने उठाया बेलन मेरा भुर्ता बनाने के लिए
एक बार तो घोर संकट था पङ सकते थे जूत
इस तरह उतर गया अपनी कविता का भूत
-“गोपी”
बेहतरीन
सच कहा कवि बनने के लिये कविता तो लिखनी ही पड़ती है 🙂
सच कवि बनने के लिए क्या-क्या नहीं करना पड़ता है ….सहना पड़ता है ..
बहुत खूब!
शब्दों की जीवंत भावनाएं… सुन्दर चित्रांकन
पोस्ट
दिल को छू गयी…….कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने……….बहुत खूब
बेह्तरीन
अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको
और
बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी
अवगत करवाते रहिये.
गुरु कविता से एक फयदा तो मिला घर पर बैन्गन खाने को तो मिला….