Homeशादाब अजिमाबादीवो परिंदा किसी दूसरे शहर का है…. वो परिंदा किसी दूसरे शहर का है…. shadab शादाब अजिमाबादी 16/09/2012 No Comments दर्द न टीस का है न लहर का है , पानी दरिया का है न नहर का है , शाम होते ही बिछड़ जाता है जैसे , वो परिंदा किसी दूसरे शहर का है , Tweet Pin It Related Posts झुकना सभी के आगे मेरी शान नहीं है…. मुझसे मज़बूत कोई दिवार लेके आओ…. हम गुलशन को ‘शादाब’ समझते रहे…. About The Author शादाब अज़ीमाबादी Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.