कल तक जो सखी थी |
वह आज पत्नी बन चुकी है
कल तक जो कामधेनु थी |
वह आज जहर की थैली बन चुकी है
कल तक जो गंगा अविरल थी |
वह आज बाधों के हार पहनी है
कल तक जो सौन्दर्य उन्मुक्त था |
वह आज दिखावा बन चुका है
कल तक जो झ्सान चार पैसे कमाने
शहर आया था |
वह चार पैसे भी गांव नही भेजता है |
कल तक जो भ्रष्टाचार चींटी थी |
वह आज हाथी बन चुका है
कल तक जो कन्हैया सुदामा का मित्र था |
वह आज कौरवौं का सारथी बन चुका है
कल तक जो आशुतोष था |
वह आज आशुतोष मिश्रा बन चुका है
पर सुना है परिवर्तन प्रकृति का नियम है
जरूर कोई इस कविता को उल्टा लिखेगा