Homeअटल बिहारी वाजपेयीजीवन की ढलने लगी साँझ जीवन की ढलने लगी साँझ शहरयार 'शहरी' अटल बिहारी वाजपेयी 14/02/2012 No Comments जीवन की ढलने लगी सांझ उमर घट गई डगर कट गई जीवन की ढलने लगी सांझ। बदले हैं अर्थ शब्द हुए व्यर्थ शान्ति बिना खुशियाँ हैं बांझ। सपनों में मीत बिखरा संगीत ठिठक रहे पांव और झिझक रही झांझ। जीवन की ढलने लगी सांझ। Tweet Pin It Related Posts यक्ष प्रश्न कवि आज सुना वह गान रे मैं न चुप हूँ न गाता हूँ About The Author शहरयार 'शहरी' Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.