मैंने माना
कि तुझे अपनों से बहुत प्यार है
कि तुम सवालों में नहीं चाहते उलझना
तुझे डर है कि /सवालों के जाल में फंसने पर
होगा बुद्ध बनना |
तो फिर /कौन होगा खड़ा / लेकर सवालों का यह झंडा
उन सुलगते सवालों के लिए/ कौन खोजेगा बोलते जबाब ?
देख तो रहे हो /हल खोजने के बहाने
नीम-हकीमों ने कैसी कर दी है
दुर्गत /सवालों की ,जबाबों की
कैसी सडन-सी हो रही है खुलेआम
कैसी अकुलाहट –सी छा रही है तमाम |
जुनूनी खंजर से /समस्याओं के फफोलों को
मत फोड़ने दो उसे
सुरम्य घाटियों में /सफेद वर्फ पर लाल छींटे
मत डालने दो उसे
तोपों की तड़तड़ाहट से /खुसी की दिवालियाँ
मत मनाने दो उसे |
माँ की लुट रही ममता पर एक सवाल खड़ा करो
बच्चों की असह्य भूख पर एक सवाल खड़ा करो
देश की खण्ड होती अखंडता पर एक सवाल खड़ा करो
सडी हुई व्यवस्था पर एक सवाल खड़ा करो
कालेधन और भ्रष्टाचार पर एक सवाल खड़ा करो
सवालों के बीच से निकलने वाले
हर काले जबाबों पर एक सवाल खड़ा करो |
बरसात की काली रात में
कोई भोंक दे खंजर /तुम्हारे प्रिय के गात में
भेज दे तुझे ,तेरे पुत्रों का सर सौगात में
तब क्या तुम चुप रहोगे ?
तब क्या तुम परचम नहीं बन जाओगे ?
नहीं खोजना चाहोगे /किसी भगत सिंह और आज़ाद को
खुदीराम और सुभाष को ?
आधी रात में रोटी के लिए भटकती
किसी मासूम को देखकर
क्या तुम भी/ दरिंदे बन जाओगे ?
क्या चाहोगे तुम भी /चीखों और कराहों का
प्रत्यक्षदर्शी गवाह मात्र बनना ?
नहीं ,मेरे विश्वास ,नहीं /तुम ऐसा कभी मत करना |
यह सत्य है /नहीं बन सकता है हर शख्स
गौतम बुद्ध
सवालों से भी दरकिनार
नहीं हो सकता है कोई खुद ;
सवाल जाता है /हर दरवाजे /एक बार
यह सत्य है /वह नहीं कर सकता है /इन्तजार |
भटको/ तुम भी सवालों के साथ –साथ
किसी फुटपाथी भुक्खड़ की तरह ;
किन्तु /तुम्हारे सवाल /युग चेतना के हों
निर्दोषों के कंठ से निकल रही /वेदना के हों
संस्कृति की ढह रही दीवारों के हों
पाखंडियों के हाथों बजाए जा रहे /घडियालों के हों |
खबर जो आम हो रही है /उसे तुम उदास कर दो
हर गूँगे सवालों को /चौराहों के आसपास कर दो |
सवालों को गूँगे और अंधे होते देखकर
तुम खुस मत होना
देश को जाति और धर्म में टूटते देखकर
तुम एकता को आवाज देना
सवालों के जाल में फंसकर /तुम मत घबराना |
मैंने माना / तुम सवालों में
नहीं चाहते हो उलझना
फिर भी ,मेरे विश्वास
तुम ऐसा कभी मत करना /ऐसा कभी मत करना |