आदमी /जीता है जिन्दगी
अपने पुरे होश-हवाश में
एक-एक कर /हर ठिकाने पर रुकता है
सम्भलता है ,फिर /बढता है आगे |
साथ-साथ उसके /चलता है उसका भूत
उसके किए कर्मों का फल बनकर
इस ताक में कि /कब और कहाँ /उसे उठा दे
या गिरा दे औंधे मुहँ |
हर अच्छे विशेषणों /का मालिक—आदमी
थोड़ा भी हिचकिचाता नहीं है
बुराइयों के ढेर से /चलते-चलते /कुछ उठा लेने में
फल की परवाह किए बिना /कुछ पाप कमा लेने में |
बोझिल होती जिन्दगी को
शबाब और शराब में डुबोकर /हल्का हो जाता है आदमी
जिन्दगी जिन्दगी लगने लगती है
किन्तु क्या?
वह आदमी रह पाता है /आम या खास ,अच्छा या बुरा
निश्चय ही वह हो जाता है /जानवरों से भी गया-गुजरा |