कभी -कभी
असमय ही बन पड़ती हैं कविताएँ
शब्दों के बाढ़ उमड़ पड़ते हैं जेहन में
काफी तीव्र हो जाती है
सोचने की शक्ति
कभी -कभी तो सोच में पड़ जाता हूँ
की आखिर जगह दूं भी तो
किन- किन शब्दों को
सभी तो अपने हैं ..,
और फिर इसी उधेड़बुन में
छूट जाते हैं कुछ शब्द
और आ जुटते हैं
फिर से कुछ नए शब्द ..,
एक साथ
संभालना काफी मुश्किल हो जाता है
और अन्ततः
इसी झुंझलाहट में
खड़ा कर देता हूँ इन्हें एक कतार में
और फिर
बनाता हूँ एक कविता …|