एक विशाल
अँधेरे बंद कमरे में
लोग एक-एक कर के
अपने-अपने हाथ में
चिराग लेकर प्रवेश करते रहे…
जो गये…लौटकर नहीं आये
शहीद कहलाये ।
और जो बच गये
धीरे-धीरे एक-दूसरे को टटोलते हुए
अपने होने का एहसास करते रहे
चीखें उठती थीं…
ऐसे में…वे आये
जिनको हम ‘गाँधी’ कहते हैं
और तैयार हुए
अँधेरे बंद कमरे में प्रवेश के लिये
किसी ने कहा, “कमरे में भयानक अँधेरा है…
अपने साथ चिराग लेते आयें
गाँधी ने कहा, “घबराओ नहीं
मेरे प्रवेश करते ही अँधेरा दूर…हो जायेगा”,
साश्चर्य लोगों ने पूछा, “वो किस तरह ?”
गाँधी ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं स्वयंप्रकाश हूँ”
और इस तरह अँधेरे में प्रवेश किये
सारा कमरा जगमगा उठा
सबने एक-दूसरे को देखा
और मिलकर…मशाल सुलगायी
देश आज़ाद हुआ…
जो उनके नजदीक रहे
अपने-आप को जानने की कोशिश की,
जो दूर रहे…लाभान्वित हुए ।
गाँधी…कोई हाडमांस का पुतला नहीं, विचार-शक्ति है
यह वैसा विचार नहीं, जिसे फैलाने की जरुरत है
क्योंकि यह सिकुड़ा और सिमटा हुआ नहीं
बल्कि सनातन है ।
गाँधी…भारतीय राजनीति के नेवला थे
उन्हें मालूम था…सांप से युद्ध करना होगा
और वे तैयार थे ।
आखिरकार
सांप के फन को कुचल दिया
अहिंसा के द्वारा
भारत का दिल जीत लिया
और कहा, “प्रेम ही सत्य है
क्योंकि जब प्रेम मुक्ति देता है
तो बिल्कुल अंदर से मुक्ति देता है…”
आज…हमें सांप की कुंडली की तरह
राजनीति जकड़ ली है
हम बुरी तरह फँस चुके हैं
“सत्य का आव्हान करो…
आत्मा में शक्ति का जो भण्डार है
वह सत्य के स्पर्श से खुलेगा…”
गाँधीजी इसलिए महान हैं
क्योंकि उन्होंने अपने अंदर
मनुष्य के भीतर के अद्वैत को…
देखा था ।
आपकी इस बेहतरीन रचना शनिवार 18/08/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
THE ART AND THOUGHT OF EXPRESSION IS UNIQUE.
बहुत बढ़िया सर!
सादर