पागल हू मैं या नाम
पागल है मेरा
कल्पनाऐं करता हूँ सदा
विवेक मेरे पास है या कहीं दूर
अनजान हूँ इससे
जगता कभी सोता
हँसता कभी रोता
पूछता हर किसी से
जानता हूँ फिर भी खोजता हूँ
अपनी प्रज्ञा
पागल पन में ना जाने
क्या-क्या कर जाता हूँ
आतुर हो जाता हूँ कभी संगीन
प्रशंसा पाने के लिए
बेबाक जिऐ जाता हूँ
पहचान बस यही की
पागल हूँ मैं
या नाम पागल है मेरा