Homeअज्ञेयघर-1 घर-1 शहरयार 'शहरी' अज्ञेय 14/02/2012 No Comments मेरा घर दो दरवाज़ों को जोड़ता एक घेरा है मेरा घर दो दरवाज़ों के बीच है उसमें किधर से भी झाँको तुम दरवाज़े से बाहर देख रहे होगे तुम्हें पार का दृश्य दीख जाएगा घर नहीं दीखेगा Tweet Pin It Related Posts उस बीहड़ काली एक शिला पर बैठा दत्तचित्त असाध्य वीणा / अज्ञेय / पृष्ठ 3 झील का किनारा About The Author शहरयार 'शहरी' Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.