- मैंने कहा–
डूब चांद।
रात को सिहरने दे
कुइँयों को मरने दे।
आक्षितिज तन फ़ैल जाने दे।
- पर तम
थमा और मुझी में जम गया।
- मैंने कहा–
- उठ री लजीली भोर-रश्मि, सोई
- दुनिया में तुझे कोई
- देखे मत, मेरे भीतर समा जा तू
- चुपके से मेरी यह हिमाहत
नलिनी खिला जा तू।
-
- वो प्रगल्भा मानमयी
- बावली-सी उठ सारी दुनिया में फैल गई।