Homeअज्ञेयपराजय है याद पराजय है याद शहरयार 'शहरी' अज्ञेय 14/02/2012 No Comments भोर बेला–नदी तट की घंटियों का नाद। चोट खा कर जग उठा सोया हुआ अवसाद। नहीं, मुझ को नहीं अपने दर्द का अभिमान— मानता हूँ मैं पराजय है तुम्हारी याद। Tweet Pin It Related Posts काँपती है सागर और धरा मिलते थे जहाँ उधार About The Author शहरयार 'शहरी' Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.