Homeशर्मनजाग उठे…चेतना…रवीन्द्रनाथ टैगोर की “गीतांजलि” का बंगला से हिंदी में अनुवाद जाग उठे…चेतना…रवीन्द्रनाथ टैगोर की “गीतांजलि” का बंगला से हिंदी में अनुवाद Manoj Kr. Sharma शर्मन 17/07/2012 No Comments चिरजन्म की वेदना चिरजीवन की साधना ज्वाला बनकर उठे निर्बल जानकर मुझे करो नहीं कृपा…ओ रे भष्म करो…वासना और विलम्ब न करो अमोघ बाण छोड़ दे वक्ष को जकड़े हुए बन्धनों को तोड़ दे शंख गरज-गरज उठे बार-बार इतना बजे गर्व टूटे…निद्रा छूटे जाग उठे…चेतना । Tweet Pin It Related Posts कभी ली थी जवानी अंगड़ाई मेरी रूह को मिलती नहीं पनाह यारों बूँद-बूँद प्यास बुझाऊँगी About The Author Manoj Kr. Sharma Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.